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वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

शिव चालीसा का पाठ पूर्ण भक्ति भाव से करें।

धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति Shiv chaisa तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥

कमल नयन पूजन चहं सोई ॥ कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।

अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा

जीत Shiv chaisa के लंक विभीषण दीन्हा ॥ सहस कमल में हो रहे धारी ।

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीस।

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

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